मौन की शक्ति
भारतीय संस्कृति एवं हर धर्म में मौन व्रत की आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण भूमिका है। मौन से शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।
अधिक बोलने से शारीरिक ऊर्जा तथा शक्ति नष्ट होती है मौन रहना अप्रत्यक्ष रूप से शक्ति-संचय की एक प्रक्रिया है।
मौन से व्यक्ति व्यर्थ एवं झूठी बातों से बचता रहता है। काम, क्रोध, मद एवं लोभ आदि पर विजय प्राप्त होती है। जीवन अनुशासित हो जाता है। उसकी वाणी संतुलित होती है व आध्यात्मिक विकास होता है। मौन हमें मानसिक रोगों से मुक्ति दिला सकता है। क्रोध को जीतने में मौन जितना सहायक होता है, उतनी कोई भी वस्तु नहीं।
मौन से कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है। अतः व्यक्ति को कम से कम शब्दों में संतुलित और मधुर आवाज में ही बोलना चाहिए। अनावश्यक वाद-विवाद, तर्क-वितर्क आदि में नहीं पड़ना चाहिए। वाणी का संयम सबसे बड़ा संयम माना जाता है। जो मौन रहता है व कम बोलता है, वही कुछ कर गुजरता है।
केवल ऐसे विचार-विनियम में भाग लीजिये जो रचनात्मक हों और जिससे कुछ नया ज्ञान मिल सके। यदि आपको अनुभव हो कि कोई बात-चीत या वाद-विवाद बिल्कुल बेतुका, अर्थहीन एवं केवल शक्ति नष्ट करने वाला है तो उसमें हिस्सा मत लीजिये बल्कि बिना प्रतिक्रिया के चुप-चाप सुनते रहिए और अवसर मिलते ही उस स्थान से चले जाइये।
निश्चयानुसार नित्य कुछ समय मौन अवश्य धारण करीं। सप्ताह में एक बार कुछ घंटों का मौन रखने से अपार-शक्ति संचय हो सकती है तथा 24 घंटे का मौन आपको इतने उत्तम अनुभव करायेगा कि आप कह उठेंगे कि मौन तो एक जादू है।
मौन के दौरान कागज पर लिख कर अपनी बात बतलाने कि प्रक्रिया को बंद रखें, केवल जब बहुत जरूरी हो, तभी किसी व्यक्ति को कागज पर लिखकर निर्देश दें। मौन के समय टेलीवीजन देखना या रेडियो सूनना भी बंद रखें।
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