सकारात्मक सोच (Positive Thinking)
संसार में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं है, हमारा नजरिया ही उसे अच्छा या बुरा बनाता है। हमारे नजरिये के अनुसार संसार की हर वस्तु में गुण या अवगुण, अच्छाई या बुराई मिलेगी। गुण या अच्छाई को देखना सकारात्मक दृष्टिकोण है और अवगुण या बुराई को देखना नकारात्मक दृष्टिकोण है।
किसी भी देश, समाज या परिवार में तब तक एकता और प्रेम नहीं हो सकते, जब तक लोग एक-दूसरे के दोषों को देखते रहेंगे।
स्वच्छ मन वाला व्यक्ति दूसरों की विशेषताएँ देखता है, दूषित मन वाला दूसरों में बुराई ढूँढता है।
आशावादी व्यक्ति पीछे की बातों को ध्यान करके आगे की ओर बढ़ता है और निराशावादी व्यक्ति आगे की बातों को सोच कर पीछे की ओर लौटता है।
जिस मनुष्य की यह धारणा बन जाती है की वह बीमार है तो निश्चय ही वह बीमार हो जाएगा जब कि उसमें रोग का कोई भी चिन्ह नहीं है।
नकारात्मक विचारों से हमारी 95% क्षमता व्यर्थ चली जाती है। इसलिए नकारात्मक विचार हमारे सबसे बड़े दुश्मन हैं।
जैसे हमारे विचार होंगे, वैसा ही हम बोलेंगे। जैसा हम बोलेंगे, वैसा ही हम कार्य करेंगे। जैसा हम कार्य करेंगे, वैसी ही हमारी आदतें होंगी। जैसी हमारी आदतें होंगी वैसा ही हमारा चरित्र होगा। जैसा हमारा चरित्र होगा, वैसा ही हमारा भाग्य होगा।
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