करेले का उपचारीय प्रयोग

Published by Aahar Chetna on

करेला कच्चा ही अधिक उपयोगी और गुण सम्पन्न रहता है। पक जाने पर इसके गुण बहुत कम हो जाते हैं, जिसके चलते इसमें स्थित पोषक तत्वों के साथ ही औषधीय क्षमताओं में भी भारी कमी आ जाती है।

प्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रंथ भाव प्रकाश में इसे शक्तिवर्धक, क्षुधावर्धक वातानुलोमक और शीतलक बताया गया है।

मधुमेह में रोगियों को नियमित करेले का स्वरस देने से रोगी को लाभ होता है।

  • पेट के कीड़ों में:- जिन बच्चों के पेट में कीड़े होते हैं उनके लिए करेला बहुत फायदेमंद है। करेले की पत्ती और फल के रस तथा बीजों के उपयोग से बच्चों के पेट के कीड़े जड़ से नष्ट हो जाते हैं।
  • कब्ज में:- करेले की सब्जी खाने से पेट में कब्ज नहीं होता और पेट साफ रहता है।
  • यकृत रोग में :- तीन से आठ वर्ष तक के बच्चों को आधा चम्मच करेले का स्वरस प्रतिदिन देने से यकृत ठीक रहता है। यकृत बढ़ने पर पचास ग्राम करेले का रस पानी मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
  • पीलिया में:- पीलिया रोग में यह अत्यंत लाभकारी है। करेला पीसकर पानी मिलाकर सुबह शाम नित्य पीने से रोग से मुक्ति मिल जाती है।
  • बवासीर में:- एक चम्मच करेले का रस खांडसारी में मिलाकर पीने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
  • पैरों की जलन में:- पैरों की जलन में करेले की पत्ती के रस से मालिश करने से जलन ठीक हो जाती है।
  • त्वचा रोग में:- सिर की त्वचा में होने वाले छाले में इसका रस लगाने से लाभ मिलता है।
  • चेचक में:- चेचक में करेले के रस में नमक मिलाकर थोड़ी और ज्यादा मात्रा में दिया जाता है।
  • पथरी में :- पथरी की शिकायत में करेले का रस नियमित पीने से पथरी गल-गल कर निकाल जाती है।
  • जोड़ों के दर्द में:- जोड़ों के दर्द में करेला रामबाण औषधि है। नियमित रूप से प्रातःकाल हल्की से काली मिर्च के साथ देशी गाय के घी में भूनकर करेले के सेवन से जोड़ों के दर्द से मुक्ति मिलती है।

पशुओं को अफरा आने पर करेले को पानी में उबालकर उसका रस निकालकर, उसमें नमक मिलाकर ढरके से पशुओं को पिलाने पर तुरंत लाभ होता है।

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