मरास्मस के कारण, लक्षण और इलाज – Marasmus Causes and Symptoms in Hindi

Published by Anushka Chauhan on

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मरास्मस के कारण, लक्षण और इलाज – Marasmus Causes and Symptoms in Hindi

स्वस्थ शरीर के लिए कई पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। अगर इन पोषक तत्वों की मात्रा घट जाए, तो शरीर कई रोगों से घिर सकता है। पोषक तत्वों की कमी का ही नतीजा है मरास्मस रोग। हो सकता है कई लोगों को मरास्मस से जुड़ी जानकारी न हो। यही कारण है कि स्टाइलक्रेज का यह लेख खासतौर पर, मरास्मस, मरास्मस के कारण और साथ ही मरास्मस का इलाज से जुड़ी जानकारियों को लेकर लिखा गया है। तो मरास्मस रोग के लक्षण से मरास्मस की रोकथाम तक की सभी जरूरी जानकारियों के बारे में जानने के लिए लेख को अंत तक पढ़ें।

मरास्मस क्या है? – What is Marasmus in Hindi

मरास्मस कैलोरी की कमी के परिणामस्वरूप होने वाली कुपोषण की समस्या है। मरास्मस की स्थिति में शरीर के एडिपॉज टिश्यू (Adipose Tissue) और मांसपेशियों को नुकसान हो सकता है। इससे बच्चे और बड़े प्रभावित हो सकते हैं। इसकी वजह से शारीरिक वजन और कद प्रभावित हो सकता है। एनीसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की रिपोर्ट के अनुसार मरास्मस से ग्रस्त बच्चा अपनी उम्र के सामान्य बच्चे से 3 गुना अविकसित हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मरास्मस रोग एक साल से छोटी उम्र के बच्चों में अधिक देखा जा सकता है। हालांकि, मरास्मस रोग दुर्लभ होता है। आकाल के समय या ऐसे बच्चे जिनका किसी कारण से स्तनपान अधूरा रह जाता है, उनमें इसका जोखिम देखा जा सकता है। आगे जानेंगे मरास्मस रोग से जुड़ी अन्य जरूरी बातें।

मरास्मस के लक्षण – Symptoms of Marasmus in Hindi

मरास्मस सीधे तौर पर शारीरिक विकास को प्रभावित करता है। इस वजह से मरास्मस रोग के लक्षण शारीरिक तौर पर आसानी से पहचाने जा सकते हैं। मरास्मस रोग के लक्षण निम्नलिखित हैं, जिनमें शामिल हैं (1) (2)

  • शारीरिक रूप से बच्चे का बहुत कमजोर होना
  • बालों का रूखा और बेजान होना
  • शरीर की त्वचा पतली, झुर्रीदार और बेजान होना
  • आंखों का बड़ा नजर आना या ड्राई आई की समस्या होना।
  • मांसपेशियों में ऐंठन होना
  • अंगों में अकड़न होना
  • उम्र के हिसाब से बच्चे का कम वजन होना।
  • नाखूनों में बदलाव होना।
  • एनीमिया और रिकेट्स से मिलते-जुलते लक्षण।
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मरास्मस रोग के कारण और जोखिम कारक – Marasmus Causes and Risk factors in Hindi

मरास्मस कुपोषण का ही एक जाना-माना और गंभीर रूप है। यह अधिकतर खाने में प्रोटीन और कैलोरी (एनर्जी) की कमी के कारण होता है। इसके अलावा, मरास्मस के कारण और जोखिम कारक नीचे विस्तार से बताए गए हैं :

  • बच्चे को गंभीर डायरिया होना
  • सांस से संबंधित संक्रमण होना
  • काली खांसी या खसरा रोग जैसे महामारी होना
  • शिशु का सही से स्तनपान न करना
  • कमजोर आर्थिक स्थिति (गरीबी)
  • भूख में कमी (Anorexia)
  • महिलाओं और बच्चों को मरास्मस का जोखिम अधिक होता है।
  • अपर्याप्त भोजन करना
  • पैरासिटिक डिजीज (परजीवी के कारण होने वाले रोग)
  • पोषक तत्वों का शरीर में अवशोषित न होने देने वाली स्वास्थ्य स्थितियां
  • ऊर्जा प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थों की कमी
  • संक्रामण, जैसे – पायलाइटिस (गुर्दे में सूजन), ओटिटिस मीडिया (कानों में सूजन), टॉक्सेमिया (खून का विषाक्त होना)।
  • शिशु में जन्मजात रोग, जैसे – समय से पहले जन्म होना, जन्मजात हृदय रोग आदि।
  • स्वच्छता की कमी होना
  • विटामिन, आयरन, कैल्शियम जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होना।
  • जरूरत से ज्यादा फैट, स्टार्च और शुगर युक्त खाद्य पदार्थ खाना।

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मरास्मस का इलाज – Treatment of Marasmus in Hindi

जैसा कि हम लेख में बता चुके हैं कि मरास्मस पोषण की कमी से होने वाली स्थिति है, तो ऐसे में उचित खानपान और पोषण के जरिए इसका इलाज किया जा सकता है। मरास्मस का इलाज करने के लिए डॉक्टर नीचे बताई गई तीन विधियां अपना सकते हैं।

1. रिससेटेशन एंड स्टेबलाइजेशन (Resuscitation and Stabilization) :

मरास्मस में निर्जलीकरण और संक्रमण जान का जोखिम भी पैदा कर सकता है। इसलिए, रिससेटेशन एंड स्टेबलाइजेशन का चरण इसके इलाज के लिए अपनाया जा सकता है। इस चरण में मरास्मस के कारण हुए स्वास्थ्य लक्षणों का उचित उपचार किया जाता है। इसकी प्रक्रिया एक सप्ताह तक चल सकती है। इस चरण के दौरान विभिन्न स्थितियों का उपचार किया जा सकता है।

  • डिहाइड्रेशन के इलाज के लिए नसों के माध्यम से तरल पदार्थ दिया जा सकता है।
  • हाइपोवोल्मिया (Hypovolemia – खून से संबंधित विकार) की स्थिति में नसों के जरिए रक्त की पूर्ति भी की जा सकती है।
  • हाइपोथर्मिया (Hypothermia – शरीर का तापमान सामान्य से कम होना) होने पर गर्म कमरे में मरीज को रखा जा सकता है।
  • वहीं, संक्रमण होने पर एंटीबायोटिक दवाओं के सेवन की सलाह दी जा सकती है।
  • इसके अलावा, रीफीडिंग सिंड्रोम के जोखिम को रोकने के लिए, उम्र के अनुसार आहार की मात्रा और खाना खिलाने का समय निर्धारित किया जा सकता है।

2. न्यूट्रिशनल रिहैबिलिटेशन (Nutritional Rehabilitation) :

पहले चरण में मरास्मस की गंभीर जटिलताओं का इलाज करने के बाद दूसरे चरण की प्रक्रिया शुरू की जाती है। जब मरीज के शरीर में इलेक्ट्रोलाइट (तरल पदार्थ) संतुलित होने लगते हैं और उसे सामान्य भूख लगने लगती है, तो न्यूट्रिशनल रिहैबिलिटेशन का चरण शुरू किया जा सकता है। इस चरण में बच्चे के शरीर में कैलोरी की मात्रा, उचित टीकाकरण के साथ ही शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाने पर भी ध्यान दिया जा सकता है। इस प्रक्रिया का चरण 2 से 6 सप्ताह तक चल सकता है। इसके अलावा, इस चरण के दौरान बच्चे में विकासात्मक शक्ति बढ़ाने के लिए मां और बच्चे के बीच बातचीत को प्रोत्साहित किया जाता है। वहीं, वयस्कों में भी कुछ इसी प्रकार की उपचार की तकनीक अपनाई जा सकती है। यह पूरी तरह से व्यक्ति की उम्र और स्थिति पर निर्भर करता है कि व्यक्ति को इस दौरान किस प्रकार के और कितनी मात्रा में पोषक तत्व देने की आवश्यकता है।

3. रोकथाम के चरणों को पालन करना:

उपचार के बाद भी मरास्मस रोग का खतरा दोबारा से हो सकता है। इसलिए, इसे दोबारा होने से रोकने के लिए इस संबंध में मां को शिशु को स्तनपान कराने और आहार के संबंध में जरूरी जानकारी देनी जरूरी है। साथ ही, अगर बड़े लोगों में मरास्मस रोग होता है, तो उन्हें भी इलाज के दोनों चरणों के बाद तीसरे चरण का पालन करने की सलाह दी जा सकती है। इसके लिए आहार स्वास्थ्य विशेषज्ञ की सलाह लेकर उचित कैलोरी व पोषण युक्त आहार का भी सेवन किया जा सकता है।

इसके अलावा, कुछ अन्य तरीके भी हैं, जिससे मरास्मस का जोखिम कम किया जा सकता है। ये कुछ इस प्रकार हैं:

  • स्वच्छ पानी का इस्तेमाल करना।
  • शरीर में पोषक तत्वों की कमी न हो इसके लिए पर्याप्त मात्रा में आहार का सेवन करना।
  • संक्रामक रोगों का नियंत्रण करना, आदि।
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