भोजन (आहार)

Published by Aahar Chetna on

शरीर के पोषण एवं क्षतिपूर्ण के लिए आहार अनिवार्य है। केवल आहार को सुधार कर भी मनुष्य के सभी रोग दूर किये जा सकते हैं। इसलिए कहा गया है कि आहार ही औषधि है। वह व्यक्ति बुद्धिमान है जो स्वस्थ दीर्घ जीवन के लिए आवश्यक आहार ग्रहण करता है और हानिप्रद आहार त्यागता है। जैसा हम आहार लेंगे, वैसा ही हमारा शरीर और मन होगा।

    जिस ऋतु में, जिस देश में, जो फल-सब्जियाँ उत्पन्न होती हैं, उनका भरपूर सेवन करने से शरीर निरोग बना रहता है क्योंकि प्रकृति ने उन्हें मौसम एवं स्थान की आवश्यकतानुसार ही पैदा किया है।

भोजन द्वारा पंच तत्व की प्राप्ति:-

   आकाश- मिताहार द्वारा

   वायु- शाक पत्तों द्वारा

   अग्नि- फलों द्वारा

   जल-  सब्जियों द्वारा

   पृथ्वी- अन्न कण द्वारा

   भोजन का वर्गिकरण– भगवान कृष्ण ने गीता में तीन प्रकार (सात्विक, राजसी एवं तामसी) का आहार बताया है।

सात्विक आहार:-

    जो आहार आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले, रस-युक्त, चिकने और स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से मन को प्रिय हों।

राजसी आहार: –

    जो आहार कड़वे, खट्टे, लवणयुक्त, बहुत गरम, तीखे, दाहकारक और दुख चिंता तथा रोगों को उत्पन्न करने वाला हो।

तामसी आहर:-

    जो भोजन अधपका, रसरहित, दुर्गंध-युक्त, बासी और उच्छिष्ट तथा अपवित्र हो।  


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